या दुःशासन की कल्पना,
किस परत को ढूंढता था
आज वह निर्वस्त्र कर?
कौन–सी साड़ी छुपा कर
रख सकी है वासना,
मन की वृत्ति मे छुपी है
जब काम की भर्त्सना,
चुप नहीं हुई जो नारी
तंज को सुन पाप के,
पाप चाहता है उसको
मलिन पद दलित करे,
पर जो विलीन हो गई हो
नाम मे श्री कृष्ण के,
उसको उकेर पाए
काम की कोई कल्पना,
आंख मूंद लेंगे वो
या मिट्टी होगी तृष्णा,
वस्त्र या बेवस्त्र हो
जोगिन भजे जो ‘कृष्णा’!
No comments:
Post a Comment