Saturday, 12 November 2022

द्रौपदी के वस्त्र

द्रौपदी क्या थी शरीर
या दुःशासन की कल्पना,
किस परत को ढूंढता था
आज वह निर्वस्त्र कर?

कौन–सी साड़ी छुपा कर
रख सकी है वासना,
मन की वृत्ति मे छुपी है
जब काम की भर्त्सना,

चुप नहीं हुई जो नारी
तंज को सुन पाप के,
पाप चाहता है उसको
मलिन पद दलित करे,

पर जो विलीन हो गई हो
नाम मे श्री कृष्ण के,
उसको उकेर पाए
काम की कोई कल्पना,

आंख मूंद लेंगे वो
या मिट्टी होगी तृष्णा,
वस्त्र या बेवस्त्र हो
जोगिन भजे जो ‘कृष्णा’!

No comments:

Post a Comment

जिम्मेवारी

लेकर बैठे हैं  खुद से जिम्मेवारी,  ये मानवता, ये हुजूम, ये देश, ये दफ्तर  ये खानदान, ये शहर, ये सफाई,  कुछ कमाई  एडमिशन और पढ़ाई,  आज की क्ल...