Saturday 12 November 2022

राग

राग से अलग हुआ है
राग अब बदल गया है,
राम नहीं बुझाता
राम नहीं भा रहा,

रास मे घुला–मिला तो
रास मन विलीन है,
राम धर किनार कर
राग नया लीन है,

राग रास छेड़ता है
अंग–अंग भरा मिटा,
तरंग को लगा–बुझा
राग अब डरा रहा,
रक्त को नचा–नचा
कल्पना मे अप्सरा
घड़ी –घड़ी सजा–सजा,

राम को पकड़–पकड़
तोड़ता हूं मैं जकड़,
दूर होके देखता हूं
राग जब रहा बिगड़!

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