Friday 30 December 2022

मुझमे

मुझमे सीता, मुझमे राम
मुझको दुनिया मे आराम,
मै ही लक्ष्मण, मैं हनुमान
शक्ति–तृष्णा मेरे काम,
मै रघुनंदन, मै घनश्याम
मुझमे बसते सारे धाम,
मै ही कविता, मै सतनाम
मेरे आडंबर, हैं सुखधाम,

मै संतों की वाणी, नाम
मुझको खोजे चारो याम,
मेरी जटा समाई गंगा
मुझमे कैलाशी का ध्यान,
मेरी शक्ति मैहर वाली
मुझमें दुर्गाकुंड का जाम
मै अल्लाह का निर्गुण रूप
मै ही ईसा का सत्काम,

मुझमे रहते हैं श्री राम
मुझमें बसते हैं श्री राम!

Wednesday 28 December 2022

फिलहाल

फिलहाल के लिए
हट जाओ,
वन एक बार 
तुम फिर जाओ,
है नहीं समाज की
समझ अभी,
धन और लाज
हैं बसन अभी,
महल प्रजा को प्यारे हैं
मंथरा के भरत दुलारे हैं,
मां कैकेई घरों मे बैठी हैं
अहिल्या अभी बहु ही है,
रज़िया का शासन
है रुका हुआ,
शिव धनुष अभी है
टूटा हुआ,
लीला धर आने बाकी हैं
गीता का ज्ञान 
भी बाकी है,
गांडीव अभी तक उठा नहीं
दुः शासन का वक्ष फटा नहीं
मलिन और जग होना
जाति का बंधन कटा नहीं,
प्रेम अभी तक खिला नहीं,
राजा का बेटा राजा
चाय बेचने वाला बना नहीं,
भारत को जोड़ने वाला अबतक
सड़कों पर अबतक चला नहीं,
राजन अभी आए हैं भारत
नोटबंदी अब तक पचा नहीं,
वाल्मीकि आश्रम मे रह लो
फिलहाल नाम लेकर जी लो,
यह व्यथा है सीते रघुकुल की
कुछ काल राम से चल जाओ!😔🙏




Sunday 18 December 2022

ठंड लग गई

मुझे ठंड लग गई
मै ठंड को लगा,
मै गले लगा 
खोल दोनों हाथ
ठंड ने छुए
मेरे दोनों गाल,

मै और मुस्कुरान
मैं राम नाम गाया,
ठंड मुस्कुराई
मै और मुस्कुराया,
मुझे ठंड लग गई
मुझे ठंड भा गई!

गंगा मित्र

ये पीपल के पेड़
उग जाते हैं छत पर,
मुहानों पर और
सड़क के किनारों पर,

इन्हे बीज की, खाद की
मुट्ठी भर जमीन की,
सिंचाई की, गुढ़ाई की
थाल की और कांट छांट की
क्या पड़ी जरूरत

ये उड़ के फैल जाते
ये धूल में खिल जाते
ये पी लेते एक बार
छू के गंगा के विस्तार,
ये तोड़ घर मकान
झुकाते शीश मां के द्वार
कर बद्ध खड़े वीर
यहीं हैं सच्चे गंगा मित्र!


हाथ

कोई हाथ लेकर आया
कोई साथ लेकर आया
किसी की गाड़ी चल पड़ी
कोई पैदल चल पड़ा,

किसी दही लगा दी
किसी ने हल्दी चूम ली,
किसी पानी चलाया
कोई पूडियां बांट आया,

कोई रुका रहा रात भर
कोई एक कंबल मे सोया
कोई सैदपुर से चला
कोई घर छोड़कर आया,

कोई फोन से मिला
कोई बात को बनाया
कोई हाथ जोड़ता 
कोई सामान जुटाया,

कोई वर पक्ष था
कोई वधु पक्ष था
कोई राम पक्ष था
कोई सीता पक्ष था,

कोई नाचता था रात
कोई डीजे से भिड़ा
कोई दारु पी लिया
कोई हंस के खुश रहा

किसी का केसर–दूध छूटा
कोई चाट भूल गया
कोई लॉन पर रहा
कोई घर बंद किया,

कोई नेग ले गया
कोई द्वार छेकता,
कौन जूता खोज पाया
कौन सरहज से गाली खाया,

किसी का सिल गया
कोई रेडीमेड मे सजा
कोई पगड़ी बांधकर
भाभी से आ मिला

शादी मे सब जुटे
सबका हाथ रंग गया!

Tuesday 13 December 2022

ठंड और डर

ठंड और डर की 
फितरत एक जैसी
डर लाती नीचे 
आत्म विश्वास को
ठंड पकड़ कर खींचे
हाथ पांव को,

ठंड कपकपाती
हांड–मांस देह,
डर सताती मन को
भुला देती नेह,

ठंड देह की 
और डर
मन का भंग है,
ठंड की वीर्य से
और डर का वीर से
जंग है!

नवरात्र

भावनाओं की कलश  हँसी की श्रोत, अहम को घोल लेती  तुम शीतल जल, तुम रंगहीन निष्पाप  मेरी घुला विचार, मेरे सपनों के चित्रपट  तुमसे बनते नीलकंठ, ...