Wednesday 28 December 2022

फिलहाल

फिलहाल के लिए
हट जाओ,
वन एक बार 
तुम फिर जाओ,
है नहीं समाज की
समझ अभी,
धन और लाज
हैं बसन अभी,
महल प्रजा को प्यारे हैं
मंथरा के भरत दुलारे हैं,
मां कैकेई घरों मे बैठी हैं
अहिल्या अभी बहु ही है,
रज़िया का शासन
है रुका हुआ,
शिव धनुष अभी है
टूटा हुआ,
लीला धर आने बाकी हैं
गीता का ज्ञान 
भी बाकी है,
गांडीव अभी तक उठा नहीं
दुः शासन का वक्ष फटा नहीं
मलिन और जग होना
जाति का बंधन कटा नहीं,
प्रेम अभी तक खिला नहीं,
राजा का बेटा राजा
चाय बेचने वाला बना नहीं,
भारत को जोड़ने वाला अबतक
सड़कों पर अबतक चला नहीं,
राजन अभी आए हैं भारत
नोटबंदी अब तक पचा नहीं,
वाल्मीकि आश्रम मे रह लो
फिलहाल नाम लेकर जी लो,
यह व्यथा है सीते रघुकुल की
कुछ काल राम से चल जाओ!😔🙏




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