Sunday, 6 March 2022

नाटक

ये रोना झूठ–मुठ का है,
ये हंसना झूठ–मूठ का है,

हमे ख़बर भी नहीं
उनके ना होने की
दर्द का सहना
हमारा झूठ–मूठ का है,

कुछ बात नहीं बनती
तो उनकी याद आती है,
वरना याद भी करना 
हमारा झूठ–मूठ का है,

बातें कर रहें हैं हम
और से बहुत खुलकर,
उनकी राह भी तकना
हमारा झूठ–मूठ का है,

उनके चीख के किस्से
हमे तो याद हैं अब तक,
उनकी प्यार की आदत बताना
हमारा झूठ–मूठ का है,

उन्हें हम छोड़ आए थे
Metro के मुहाने तक,
उनकी राह तकने का बहाना
हमारा झूठ–मूठ का है,

उन्हें भुलाकर बैठे थे
शहर में जाकर उनके ही,
उनके ही लिए पढ़ना
हमारा झूठ–मूठ का था।

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