Friday 4 March 2022

जाने भी दो

बचपना उनका है
उनको जाने भी दो,
किसी और की
अब हो जाने भी दो,

उनकी खुशी की 
इल्तज़ा करते थे,
कुबूल हो गई है
हो जाने भी दो,

हम तो पैमानों मे
समाते ही कहाँ थे,
मैखानों का लुप्त 
अब उठाने भी दो,

उनको नाज़ है अपने
खरीदारों पर,
उनको हुश्नों–जमाल
कुछ लुटाने भी दो,

लिहाफों पे पैबंद
आफताब का हो,
हिजाबों से ख्वाहिश
सजाने तो दो,

महलों मे वो 
नज़रबंद हो गए हैं
उनको दुनिया से
नज़रें चुराने भी दो,

कल को आयेंगे शहर मेरे 
मुझे ढूंढते हुए,
उनको पता मेरा
भूल जाने भी दो,

लिख लो दिल की कलम से
अफसाने मुहब्बत के,
महफिलें गैर की
सजाने भी दो,

वो मुकर्रर करेंगे
मेरे नाम को,
कुछ और वक्त
बीत जाने भी दो।

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