Thursday 28 December 2023

जुबां

बिना चोट खाए 
दिल को कहरते देखा,
मैंने आज उर्दू ज़बां को 
अंग्रेज़ी मे कहते देखा,

लाल मिर्च की चुटकी 
उनका तीखा तेवर,
उनकी प्यारी मुस्कान
जैसे देसी घि का घेवर,

खट्टे नींबू के रस 
जैसी उनकी बातें,
मीठे आम का शर्बत 
उल- जलूल हरकतें,

जेठ की गर्मी जैसी 
उनकी अकड़ी चाल,
चुप होकर वो बैठी 
तो सुर्ख कमल-सी लाल,

उनका आलस जैसे 
ठंडे मौसम का कुहरा,
उनकी अंगड़ाई जैसे 
इन्द्रधनुष लहराया,

सुबह की किरणों को 
गंगा उतरते देखा,
मछलियों को मैंने 
हवा मे संवरते देखा!

उनकी आगे की सीट 
जैसे शालीमार,
उनकी टक्कर ढीठ 
जैसे एक फुंकार,

उनका हेय धिक्कार 
पत्थर की लकीर,
उनका मेल-मिलाप 
माया भेष फ़कीर,

उनकी चोर नज़र
जैसे सीपी के मोती,
उनकी उड़ती ख़बर 
जैसे हाथों मे ज्योति,

उनका प्यार का चस्का 
जैसे चाय का शौक,
महफ़िल मे आना-जाना 
जैसे फ़िल्मों का दौर,

आसमाँ को मैंने 
कुछ छोटा लगते देखा,
उनकी मुट्ठी में मैंने 
आकाश सिमटते देखा!






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