Sunday 24 December 2023

मिट्टी का पुतला

फिर वही 
मिट्टी का बुत, 
जोड़कर रख्खा 
ऊपर एक पर एक,
ढो- ढो कर ले जाता 
यह जान को टेक,

यह कर्ता कोई प्रण 
फिर होता विफल,
आज का कल 
और फिर कल,
चेतना पर बोझ 
यह अन्तर पर स्थूल!

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