समाज क्या कहेगा?
कौन मेरी अस्मत
कब, कहां लूट लेगा !
सब वक्त का हिसाब
सब इल्म की किताब
सब अनुभवों के नुस्खे
सब आंखों के जवाब
पूछ मुझसे लेंगे!
लोग क्या कहेंगे?
यही जानने को
टटोला मैने मन को
कल्पना के पटल पर
पाया सभी जन को
देखते मेरी तरफ
रख रहे मेरी सनद।
मै वक्त जरा ढूंढ के
सोचा राम से मिलूं जरा,
लोगों की कहानियां
आराम से सुनूं जरा,
चलते–चलते रास्ते मे
मिल गए मामा जी,
दवा लेने आए थे
गिर गए थे नाना जी,
खाने को मिठाई मै
मौसी जी के घर गया,
वो शोक मे थी व्याकुल
की प्रमोशन कैसे रुक गया,
चाचाजी के घर गया मै
चीनी मांगने के लिए,
वो लड़ रहे थे चाची से
तरकारी रोटी के लिए,
अब छुपा न जा रहा था
जब मैं नहीं था सामने,
मै साइकिल उठा निकल
मित्र मेरे ढूंढने,
एक मिला चौराहे पर
वह ताड़ रहा लड़कियां,
एक पढ़ रहा था डूब के
गणित समझ न लिया,
एक मित्र के घर गया
वो लड़ रहा था भाई से,
उसको जामुन नहीं मिला
तो ऊब गया मिठाई से,
कुछ और सोचकर के मै
नदी तरफ चल गया,
नाव का ही सैर करूं
चिड़ियां बना उड़ गया,
वहां देखा बैरिकेड
मोदी जी का आगमन,
सब selfi लेने के लिए
फोन मे ही हैं मगन,
फिर सोचा घाट पर
या मंदिरों की थाह लूं,
वहां देखा कोई couple बैठा
सोचे कब की मै चलता बनूं।
वहां से गया मै फिल्म
देख लूं कोई,
पर नाक–मूंह बंद कर
कोई क्या ही मजा ले सके?
फिर आया घर पे मै
किसी दोस्त को ही फोन करूं,
Weekend पर हों घर कोई
उसको थोड़ा disturb करूं,
एक को जो फोन किया
उसका पेट गड़बड़ था हुआ,
दवा लेकर गैस की
आराम से पड़ा हुआ,
एक मित्र बोला
छुट्टी दो दिन ही क्यों है
Weekend पर,
पांच दिन होती अगर
दारु पीता और घर पर,
अब ना सब्र ही रहा
तो फोन किया ex को,
उनको मेरी थी क्या पड़ी
जो हुई नही Phd,
सब लगे थे जीवन मे
समस्या लिए छोटी–बड़ी,
और मै पड़ा था भ्रम मे
लोग क्या हैं सोचते,
कोई न सोचता है मुझे
ना मैं ही किसी और को,
पर भरम मेरा बहुत बड़ा
जो ढक लिया है मुझी को।
कल न होगे तुम तो
दुनिया चलेगी रफ्तार से
कोरोना से ही क्या रुकी!
जो रुकेगी तुम्हारे बाद से?
कुछ करो और करो
Busy रहो काम से,
राम–राम नाम लो
बच चलो संताप से !
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