चिड़िया को लाख समझाओ,
की पिंजरे के बाहर आओ,
पर वो कहेगी, 'नहीं!'
मैं यहीं पर हूँ सही।
मेरा पिंजरा, 'सोने का है !'
फिर काहे को रोने का है ?
यहाँ सभी सुख-चैन है,
AC, fridge, Cooler-fan है
यहाँ बैठे बिठाए खाना है,
बस एक चोंच ही हिलाना है,
हर बख़त पानी कटोरा है भरा,
मीठा स्वाद है उसका, बहुत ही सुनहरा!
पर बाहर तो ताज़े फल हैं
और 'सुमन' के दाने है,
पानी के झरनो मे घुलते
तुम्हारे कलरव-गाने हैं!
और खुली हवा की साँस है,
आज़ादी का अहसास है।
'नहीं ! बाहर ज़िंदगी बकवास है,
परीक्षा है हर घड़ी, हर दिन एक class है।
यहाँ छोटा-सा मेरा झूला है,
वो मेरा ख़ुद का अकेला है,
सीख़चो का पहरा कड़ा है,
नहीं जान का ख़तरा बड़ा है!
बाहर पेड़ की ऊँची फुलगियाँ है,
जहाँ से दिखती सारी दुनिया है,
डालियों पर फुदकना है,
सभी के संग चहकना है!
और तुम्हारा मन था उड़ने का,
किसी के साथ उड़ने का,
हाँ ! पर मेरे पिता का नहीं है,
और वो जो भी हैं, सही हैं।
उन्होंने ही तो उड़ना सिखाया था,
पंखों को खुलना सिखाया था,
आँधी-से, थपेड़ों-से जब डगमगायी,
थामकर ऊँगली, सम्भलना सिखाया था।
हाँ................! सिखाया तो था !
सीख नहीं पायी मै, उड़ने की कला
जो कुछ भी सीखा, बड़े धीमे से सीखा,
गा नहीं सकती कोई 'रामकली',
अदनी-सी चिड़ियाँ मै, नहीं 'श्यामकली !'
और.........
मेरा भाई भी तो है,
वो उड़ना जानता है,
वो उड़ेगा मेरी तरफ़ से.......
की पिंजरे के बाहर आओ,
पर वो कहेगी, 'नहीं!'
मैं यहीं पर हूँ सही।
मेरा पिंजरा, 'सोने का है !'
फिर काहे को रोने का है ?
यहाँ सभी सुख-चैन है,
AC, fridge, Cooler-fan है
यहाँ बैठे बिठाए खाना है,
बस एक चोंच ही हिलाना है,
हर बख़त पानी कटोरा है भरा,
मीठा स्वाद है उसका, बहुत ही सुनहरा!
पर बाहर तो ताज़े फल हैं
और 'सुमन' के दाने है,
पानी के झरनो मे घुलते
तुम्हारे कलरव-गाने हैं!
और खुली हवा की साँस है,
आज़ादी का अहसास है।
'नहीं ! बाहर ज़िंदगी बकवास है,
परीक्षा है हर घड़ी, हर दिन एक class है।
यहाँ छोटा-सा मेरा झूला है,
वो मेरा ख़ुद का अकेला है,
सीख़चो का पहरा कड़ा है,
नहीं जान का ख़तरा बड़ा है!
बाहर पेड़ की ऊँची फुलगियाँ है,
जहाँ से दिखती सारी दुनिया है,
डालियों पर फुदकना है,
सभी के संग चहकना है!
और तुम्हारा मन था उड़ने का,
किसी के साथ उड़ने का,
हाँ ! पर मेरे पिता का नहीं है,
और वो जो भी हैं, सही हैं।
उन्होंने ही तो उड़ना सिखाया था,
पंखों को खुलना सिखाया था,
आँधी-से, थपेड़ों-से जब डगमगायी,
थामकर ऊँगली, सम्भलना सिखाया था।
हाँ................! सिखाया तो था !
सीख नहीं पायी मै, उड़ने की कला
जो कुछ भी सीखा, बड़े धीमे से सीखा,
गा नहीं सकती कोई 'रामकली',
अदनी-सी चिड़ियाँ मै, नहीं 'श्यामकली !'
और.........
मेरा भाई भी तो है,
वो उड़ना जानता है,
वो उड़ेगा मेरी तरफ़ से.......
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