हम पंचवटी के वासी,
हम उड़ने वाले के पुत्र
हम जंगल के पथगामी,
हम रघुनाथ के सेवक
हम सिया राम के चातक,
हम पूंछ जलाने वाले
हम मंगल नाम के वाचक,
हम कंद मूल खाते हैं
हम नीचे सो जाते हैं,
हम खाकर हवा जी लेते
हम पानी के पूजक,
हम नम्र सदा विनीत
हम गाते भ्रमण मे गीत
हम चूस लेते मकरंद
हम किष्किंधा के मीत!
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