Tuesday, 22 June 2021

पागल

वह लड़ लेती अकेले 
दुनिया से, समाज से,
पर डरती है जब सोती,
कमरे के अंधकार से।

बत्ती जलाकर सोती 
अपने कमरे मे,
और दरवाजे को 
आधा खुला रखे वो।

वो डर जाती है
चिल्लाने वाली आवाज से,
वह सहम-सी जाती
कांपते कायाकल्प से।
वह डरती रही हमेशा
जब जान कुछ ना पाती,
वह डरती रही उसीके 
चेहरे कि देख लाली।

वो डरती रही 
‘शिबू’ के आने से,
अपनी गाड़ी जलाने से,
घर फूंकने से,
पर्दे जलाने से 
टीवी पटकने से,
थाली फेंकने से,
चाकू उठाने से,
कैंची उठाने से।

वह डर रही ‘शिबू’ से
शिबू’ को बचाने को,
वो डरती ‘शिबू’ के
डर को छुपाने से।

वो डर रही थी पल-पल,
‘शिबू’ के पागलपन से,
और ‘शिबू’ बना रहा पागल 
उसको डराने को।

‘शिबू’ डरा हुआ था
डर के चले जाने से,
‘शिबू’ पागल बना था
‘शिबू’ को बचाने को,
सब डरे रहे थे ‘शिबू’ से
‘शिबू’ को बचाने को।

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