जो है नहीं जेहन मे
जिसे जानता नहीं हूं,
जो देखा भी नहीं है
जिसे पहचानता नहीं हूं,
कब समर्पण होगा?
जब मोह भी न होगा
जब चैन से रहूंगा?
जब वो मना भी नही करेगी
जब मैं डरा हुआ भी न हूंगा?
किसके प्रति समर्पण?
जो मन के विचार मे है
जो सत्य भी नहीं है?
जो भ्रम का मायाजाल है
जो अर्थहीन लस्य है?
किस चीज का समर्पण?
श्री राम के विश्वास का
या सत्य के निज धाम का?
वचन का, आदर्श का
वासना की भेदी पर
प्यार के ही नाम का?
है समर्पण सत्य वह जो
दुर्दशा मे कर सको
प्राण या माया का बंधन
प्राण रहते तज सको
राम के मिलने से पहले
राम का सब दे सको,
राम कहते राम सुनते
राम मे मय हो सको!
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