बात–बात पर बिगड़ जाती
जो नहीं कहता,
वही तो वो समझ जाती,
मेरे दोस्ती वाले फोन
मुझे बहुत हंसाते
याद करते बीते दिन
रूठने पर मनाते,
फोन तो था दोस्तों से
मिल भर जाने को
पर जीवन था सामने
दोस्त और बनाने को,
फोन वाली दोस्त से
मै पत्थर और किताब के
सवाल पूछता था,
मै अखबारों
और कविताओं के
उन्मान पूछता था,
फोन वाली दोस्त बस
किताब तक ही सीमित थी,
दोस्ती भी उसकी
कुछ बात तक ही सीमित थी,
दोस्त जो बने कभी
वो फोन से नहीं बने,
फोन तो था चाहता
की दोस्ती रही बने!
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