Saturday 14 May 2022

महफूज़

पड़ गए तुम्हारी बाहों में
अपना सामान भुलकर,
एक अरसा हो गया ही
महफूज़ सोए हुए,

खुले आसमान की चादर
ओढ़ी बड़े दिनों पर,
ज़माना बीत गया 
दोस्तो के लिए रोए हुए,

तुम्हारी गाड़ी पर बैठकर
छोड़ा रेल को पीछे,
हम लड़ते रहे खुद से
ज़हर मन मे बोए हुए,

बेवफा की वफ़ा का
हमे इल्म कहां था,
कहां वक्त ही मिला
औरों के लिए रोए हुए,

किसी और पर हंसना हमे
Comedy लगती थी,
सुकून खुद पे हंसने का
हम यूं थे गोए हुए!

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