Tuesday, 10 May 2022

दोस्त

थोड़ा–थोड़ा करके
दोस्त बनते हैं,
कुछ मांगते हैं मुझसे
कुछ दान करते हैं,

कुछ सोचते हैं मेरा
कुछ अपनी कहते हैं,
मुझे परख–परख के
वो नाम धरते हैं,

छीन कर नहीं
ना पीछा करने से,
मांगकर नहीं
नहीं संग्राम करने से
दोस्त मिलते हैं
निःस्वार्थ सम्मान करने से!

No comments:

Post a Comment

जिम्मेवारी

लेकर बैठे हैं  खुद से जिम्मेवारी,  ये मानवता, ये हुजूम, ये देश, ये दफ्तर  ये खानदान, ये शहर, ये सफाई,  कुछ कमाई  एडमिशन और पढ़ाई,  आज की क्ल...