Tuesday, 3 May 2022

कबूतर

ये गांव है गांव
यहाँ लोग नहीं रहते
कबूतरों की तरह
झुंड दर झुंड
दड़बों के भीतर

यहां लोग उड़ते हैं
झुंड दर झुंड
गुटर गूं करते हैं
झुंड के झुंड,
दाना चुगते हैं
झुंड दर झुंड
और गाना गाते हैं
मिलकर
झुंड दर झुंड

और फिर उड़ जाते हैं
शाम को अपने–अपने
घोषलों की ओर अकेले।

No comments:

Post a Comment

जिम्मेवारी

लेकर बैठे हैं  खुद से जिम्मेवारी,  ये मानवता, ये हुजूम, ये देश, ये दफ्तर  ये खानदान, ये शहर, ये सफाई,  कुछ कमाई  एडमिशन और पढ़ाई,  आज की क्ल...