हम बार-बार बुलाए जा रहे हैं,
मौत तो कब की हो चुकी है
एक मुद्दत से जलाये जा रहे हैं,
हम तो बैठे हैं मंच को
औरों पर छोड़कर,
क्यूँ स्वागत मे सबके
उठाए जा रहे हैं?
अब नहीं है इजाजत
उनका नाम लेने की,
गैरों से महफ़िलों मे
आजमाये जा रहे हैं?
किसी खता के डर से
मौन कर चुके हैं,
हम क्यूँ बोलियों से
उकसाये जा रहे हैं?
No comments:
Post a Comment