हमसे हुआ ही नहीं हौसला जोड़कर,
मधुशाला मे कैसे कदम रखते
जहां दहलीज पर आए थे हम
पुराना जहाँ छोड़कर,
कैसे हो नहीं नम आँख ये
लबों का कहकशां छोड़कर,
आज होश मे देखा जब
कमरा वो, नशा छोड़कर,
की मरहम कहाँ मिलेगा
ऐसे लम्हों के तसव्वुर का,
किसको कहेंगे अपना
हम अपनों का महकमा छोड़कर,
बहारों का रास्ता,
वहाँ होकर नहीं निकलता,
उड़ जाती है चिड़िया जहां
अपना घोंसला छोड़कर!
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