उनको खूब मतलब है,
हम उनको अब बड़े
बेरहम दिखाई देते हैं,
मुझसे होकर दूर भी
वो परेशान रहते हैं,
उनको आईनों में भी अब
केवल हम दिखाई देते हैं,
नमस्कार नहीं? दुआ-सलाम नहीं
नज़रे भी मिलाते नहीं,
दिल दुखाने वालों को हम
बेरहम दिखाई देते हैं,
हमारी शिकायतों पर वो
अफ़साने कई लिख सकते हैं,
मैख़ानो मे उनके कोई हम
धर्म दिखाई देते हैं,
इस्तेमाल कर रहे हैं
हमसे दूर जाकर भी,
उनको हम बीमा की
रकम दिखाई देते हैं,
और मुँह फूला लेते हैं
हमसे बात करके चार,
उनको हम ही मीठा-सा
बबल- ग़म दिखाई देते हैं,
हमको दर्द होता है
उनकी बात सुनकर भी,
तो दिल को कहाँ ये
ज़ख़्म दिखाई देते हैं,
हम फिर चले जाते हैं
उनका बैग ले आने,
इन ज़ख्मों के वही तो
मरहम दिखाई देते हैं,
जी तो कर्ता है की
वो गुमान तोड़ दें,
पर हमको कहाँ वो
दुश्मन दिखाई देते हैं?
उनके शिकवो का जवाब
हम दें भी तो कैसे,
अब महफ़िलों मे बहुत वो
कम दिखाई देते हैं,
और जिनके कंधों पर
वो अपना सर झुकाते हैं,
वो हमारे दोस्तों मे बड़े ही
अहम दिखाई देते हैं,
और फिर से आयेंगे
जब मुशायरों मे वो,
तब तलक अब चलो
कुछ कलम चलाई लेते हैं!
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