आज फिर वही ठंड,
हल्के बारिश वाली
रोम-रोम उत्तेजित
सतह के नीचे,
प्रवाहित मंद तरंग
घर्षण से उन्मादित
तन स्थिर मन तंग।
आलिंगन को व्याकुल
ऊष्मित अंग समग्र,
निथर जाती टपक-टपक
मेरी सतही तरंग।
तलवे ठोस झंकृत
भीतर विद्युत अनंत,
स्मृति पर आक्षादित
छुअन, चुभन, सुगंध।
विश्वामित्र बिन मेनका
मनोवृत्ति का आलस्य,
मेरी अग्निपरीक्षा
बारिश मे तपस्या।
हल्के बारिश वाली
रोम-रोम उत्तेजित
सतह के नीचे,
प्रवाहित मंद तरंग
घर्षण से उन्मादित
तन स्थिर मन तंग।
आलिंगन को व्याकुल
ऊष्मित अंग समग्र,
निथर जाती टपक-टपक
मेरी सतही तरंग।
तलवे ठोस झंकृत
भीतर विद्युत अनंत,
स्मृति पर आक्षादित
छुअन, चुभन, सुगंध।
विश्वामित्र बिन मेनका
मनोवृत्ति का आलस्य,
मेरी अग्निपरीक्षा
बारिश मे तपस्या।
No comments:
Post a Comment