अपने बसेरे से,
दूर हैं कहीं
अपने शहर से,
आसमान से देखते
बातों से टटोलते,
टीटीहरी के जैसे
हम बोलते सुनते,
आँसू का सैलाब है
कनाडा की है ठंड,
एहसास रेशमी है
अपनों का संग,
हम पढ़ चुके दुनिया के
तरीके और रिवाज़,
अब कैसे न करें
सेवा जाकर सात समुंदर पार,
दूर हैं तो आना
लेकर थोड़ा दाना,
आकर अपनी मिट्टी
लगाना दूर के बीज़!
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