Wednesday, 15 May 2024

सुबह की धूल

यह धूल नहीं है 
भूल सुबह की,
यह राम-रज कण
है कुम्हली-सी,

चादर की एक 
परत पड़ी-सी,
जिसके बाहर
धुप खिली-सी,

यह धूल उड़ी-सी
कुछ राह चली-सी,
पगडंडी इक 
बनी हुई-सी,

नही ऑंख पर
परत पड़ी-सी,
यह आने वाली 
कली खिली-सी!


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