बस इधर चल मन,
आज छोड़ी हुयी
राह एक बार धर,
उधर ही हैं
राम वन गमन,
उधर ही
बुद्ध के चरण,
कर ऐसा प्रयत्न
राम का कर आचमन
धर ध्यान हो मगन,
यह अगन
यह चुभन,
यह नित्य प्रलोभन,
कर के दमन
धर धीरज,
उसको पहचान
जैसा होगा
पद दलन,
मान मर्दन
क्यूँ नहीं रोकता
यह चरित्र-चलन,
खल से बैठे हैं
दोनों तरफ
खर दुशन,
कर लेंगे हरण,
जाएंगे कई दिन बीत
होगा फिर वक्त हनन,
उधर बढ़ चल जिधर
कर सकता हवन,
शुद्ध वातावरण
एक बार मन
बढ़ा तो वहाँ चरण
राम के शरण
कर राम पद धारण!
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