एक जून की रोटी
को मोहताज है,
है कोई जो
रात सवेरे
चिंतित है लाचार है,
है कोई जो
दौड़ रहा है,
पाई एक जुटाने को,
है कोई रेंग रहा है
अगले मोड़ पे
जाने को,
है कोई जो
नहीं है सोया
तीन रात से लगातार,
है कोई जो
झाँक रहा है
खिड़की खोलकर
बादल पार,
हैं ही सब ये
आस- पास,
डूबते- उगते
तारे साथ,
हमको देते
तभी दिखाई
जब हमे सताती
असली भूख,
वर्ना हम भी
हैं कोई जो
दिन-रात मिटाते
अपनी भूख!
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