मन होता धवल,
ऊचाईयों से झांकता
चाहता गहराई का गहन,
राम के दरबार से लौटकर
मिट्टी के सांचों मे बंधा सोचकर,
अपने मलीन उद्योग से
प्रेरित कोई पद ढूंढ़कर
देखता है, सोचता है
चेहरा कोई मलीन,
तड़पता हुस्न,
काम का शैलाब
अधरों पर धरे मय बंध
माया की प्रबलता चुन,
यह होता नित्य निर्बल
भूल जाता भूख
तल्लीन हो निर्जल,
अपनी अबलता का
ढूंढ़कर प्रतिबिंब,
राम-सा निर्मल
भुलाकर
होता और खोजता मलीन !
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