Sunday 2 April 2023

कुछ और भी थे

कुछ और भी थे 
उस कमरे मे,
जो पढ़ने-लिखने 
आए थे,
कुछ और भी थे 
जो अपनी गंगा 
अस्सी छोड़ के 
आये थे,
वो भी साथ मे 
देख रहे थे,
खिड़कियों से 
गिरती हुयी 
बारिशें,
वो भी साथ 
मुस्काये थे 
याद किए 
उनकी शरारतें,

कुछ और भी थे 
जो टेबल कुर्सी 
मिट्टी छोड़ के बैठे थे, 
कुछ और भी थे 
जो लिट्टी-चोखा
पेड़ के नीचे खाते थे,
कुछ बच्चे थे जो 
मंदिर जाकर 
नदी कूद के डूबे थे,
कुछ और भी थे 
छोड़ मसखरी
अंग्रेजी में बतियाते थे,

उस कमरे वाले चले गए 
अपने पीछे छोड़ गए 
कुछ खाली कुर्सी 
खाली कमरे,
खाली वीरान 
अब सजते होंगे 
गंगा तीरे 
घाटों पर गुलज़ार,
कभी हमारी छुट्टी होगी 
हम भी होंगे उस पार!


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