फिर रक्त के बेड़े,
आज विचारों के लगे हैं
रोड पर मेले,
इधर-उधर
ढुलक रहे हैं
साँस के ठेले,
काम मे क्रोधित हुए
काम मे खेले,
काम से बाधित हुए हैं
बेकाम के फैले,
राम के विमुख
मिट्टी ये मैले,
आदतों की सह से फैले
मेरी ये बेलें,
अब आप मे
उलझ गए ये
आप ही झेले,
राम से अलग हुयी
ये राम की बेलें !
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