मज़ाक उड़ा रहे हैं,
आप मेरे गुमान का 
सामान बना रहे हैं,
यह कैसी है बात 
यह कैसा है संबाद,
जिसे भगवान कहते हैं 
उसे शैतान बता रहे हैं?
मजाक उड़ाने की नहीं 
हमारी है दरकार,
हम करते हैं विनोद 
आप हैं मेरे सर्कार,
हम कहाँ महफ़िलों में 
कोई नाम ले रहे हैं?
कहां आपको कुछ 
सरेआम कह रहे हैं?
हम तो बस आपकी 
एक मुस्कान चाहते हैं,
कुछ तरल हो माहौल 
एक विराम चाहते हैं,
आपके डूबते 
चश्मे- नूर के लिए,
एक सूरज नया 
नया आसमान चाहते हैं!
 
No comments:
Post a Comment