चांद की पैरवी,
ये फैली हुई 
रात की चाँदनी,
यह पूनम है 
रोशनी का सवेरा,
शबनम का दरिया 
गुलों का बसेरा,
यह नहीं दाग-दामन 
हो अंधेरों में ओझल,
रात रोने नहीं हो 
महकने की शोहरत,
घटती नहीं, 
ये बढ़ती नहीं,
चश्म है ये खुदा की 
रोज़ खुलती नहीं,
जुटाता हूं, रोपता हूं 
मैं हाथ में रोकता,
पैरवी चांद की कर 
ज़िंदगी ढूंढता!
 
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