नायाब हो,
पूछती हो वो
जो सब नहीं सोचते,
चाहती उसको
जो बंधन से है परे,
तुम्हे है ईल्म भी
इस बात का,
है आजाद होना क्या?
तुम की वो सारे काम
जिसमें है दफन
इंसानियत के सारे राज,
तुम्हारी है यही हसरत
की सब खुश रहें
हर वक्त,
तुम लड़ चुकी हो
खुदा से कर के
दो-दो हाथ,
तुम बुद्ध की हो प्रश्न
तुम्हें महावीर का संकल्प,
माया के आईने में
तुम रूप की विकल्प,
तुम्हारे लिए रची
विज्ञान ने चौदहवी आयाम,
तुम हो बहुत नायाब!
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