यह भय है तुम्हारा,
भय से द्रवित 
यह मैं है हमारा,
मैं से है प्रश्न और 
अधिकार की है ख्वाहिश,
ख्वाहिशों से खिंचा 
इन्तेज़ार है हमारा,
इन्तेज़ार से प्रभावित 
यह मौन हुआ व्रत,
व्रत-खण्डित हुआ मन 
तलबगार है तुम्हारा,
तलब की मिटी नहीं 
यह प्यास अनवरत है,
पर मोहिनी बना हूं 
फिर भी गुनाहगार हूं तुम्हारा!
 
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