अगली सीट तुम्हारी थी
तुम सफर मे सबको प्यारी थी,
तुम्हारी बाते मनरंगी
साथ तुम्हारा सत्संगी,
तुम्हारे किस्से बचपन के
शब्द तुम्हारे उपवन से,
क्षेत्र तुम्हारा त्रिभुवन-सा
मित्र तुम्हारे मोहन से,
प्रश्नों की गठरी रेशम की
अनुभव की पोटली दर्पण-सी,
सीखने की चाहत भँवरे की
राग जुटाती हर कण की,
उन्माद नदी के कलकल सी
आह्लाद भोर के कोकिल-सी,
पर अगला स्टेशन तुम्हारा है
इस सफर का यही किनारा है!
No comments:
Post a Comment