रात भी सोती रही
तुम्हारे साथ गलबहियाँ कर,
बादलों ने छींटे मारी
खिड़की से अंदर आयी,
सूरज ने रोशनदान से
झाँककर देखा
पाँव मे गुदगुदी की,
रात ने गेसुओं संग
आंख पर पर्दा किया,
शरद ने हवा को
कुछ सिहरन दिया,
स्वप्नों ने हाथ पकड़ा
अंगड़ाईयों मे जकड़ा,
हवा के थपेड़ों ने
छत चहलकदमी की,
आलस ने नींद से
जुगलबंदी की,
ऊषा को निराशा
घेरने जब लगी,
बादलों से काजल
धुलने जब लगी,
ओस की बूँद
आंखों लगाकार अली,
आज देर से
मिट्टी से सुरभि जगी!
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