बोल दिए कुछ झूठ,
रो न देना तुम 
हम रो बैठे झूठ-मूठ,
तुम भूल जाओ वो याद 
हमने बात बनाई कुछ,
तुम रहो न फ़िक्र से त्रस्त 
हमने बात घुमा दी कुछ,
समाज न समझे कुछ 
हम बन जाते कुछ मुर्ख,
तुम खो न दो कुछ वक्त 
हम धारण कर बैठे मौन,
पर तुमने परख जुटा 
और पकड़ लिया ही 
सफ़ेद धवल झूठ!
 
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