कुछ बड़ी हो गई हो,
नादानी से उठकर 
खड़ी हो गई हो,
बाल-गोपाल वाले
ना की वो शरारत,
कोई बदमाश कहे
ऐसी आई न नौबत,
अंक ही त्याग बैठी
जिसको अपना न माना,
तुमने ममता की आंचल 
लूटा कर के जाना,
घसीटा किसी ने 
छुड़ा लायी ख़ुद को,
देखा किसी ने 
छुपा रखी खुद को,
भावना में बही ना 
रुद्र रूप ही दिखाया,
तुमने उंगलियों को 
मुट्ठी कर सजाया,
खार को भी गुलों से 
हटाती रही हो,
13 दिन मे सूरज 
उगाती रही हो,
तुमने दोस्तों को 
खुदा कर नवाजा,
उनके खंजरों को
अपने भीतर छुपाया,
बातें ईश्क वो 
समझ ही ना आयी,
गीत औरों के संग 
तुम नहीं गुनगुनाई,
दे दिए तुमने नंबर 
औरों को बढ़कर,
तुमने न शर्तें 
किसी की उठाई,
मिट्टी के घर मे
परी हो गई हो,
चेतना के शिखर पर
उड़ी बस गई हो,
सुरभि ही चंदन की
पहचान हो गई,
मिट्टी की गुड़िया 
सामान हो गई!
 
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