Wednesday, 6 March 2024

निर्झर

निर्झर बहता झर्झर-झर्झर 
कर्णों से तर कर अंतर,
ओद ललित शोणित कलकल
आह्लादित मद्य स्फूर्त चपल,

झनझन-झनझन 
झंकृत तन-मन,
सन-सन, सन-सन
पवन की सिरहन,

खन- खन अमृत 
कर्णों की लगन,
अवशोषित तन
विस्मृत जीवन,
आप पलक 
खुलते लोचन,
निद्रा के पल 
अब हुए विरल,
प्रस्फुटित हुआ 
नव-निर्झर! 

No comments:

Post a Comment

जिम्मेवारी

लेकर बैठे हैं  खुद से जिम्मेवारी,  ये मानवता, ये हुजूम, ये देश, ये दफ्तर  ये खानदान, ये शहर, ये सफाई,  कुछ कमाई  एडमिशन और पढ़ाई,  आज की क्ल...