Sunday, 10 March 2024

हँसी

तुम्हारी हँसी 
बेख़ौफ़, बेदाग 
बेहिचक,
हर वजह
हर जगह,
हर समय 
हर घड़ी,
मोतियों की लड़ी 
टूटकर गिर पड़ी,

बाँध से छूटकर 
एक नदी चल पड़ी,
पहाड़ों से उतरी 
एक हवा की लहर,
थपेड़ों चमन मे
गूँजाती हुई,
हरे घास के 
तिनकों में लुढ़क,
आज खुदगर्ज हो
गुनगुनाती हुई,

कोयलों की कुहन
बादलों की गरज,
वादियों मे हुई 
साज की अट्टहास,
ये बड़ी बदहवास 
ये खुली बेनक़ाब,

ये किताब, ये जवाब 
ये हिसाब, ये रबाब,
ये खिताब, ये खिज़ाब
ये अनाब और शनाब,
कौतुहल की गुलाब 
लखनऊ की नवाब,

ये शहर की नहीं
ये अब किसी 
शरहद की नहीं,
ये गांव की नहीं
किसी तांव की नहीं,
परिवार की नहीं
मेहमानों के 
सामने भी नहीं,
किचन में कभी
झांकने सी नहीं,

यह दबी क्या कभी
यह किसी से नहीं,
पसंद है नहीं
यह सभी को नहीं,
यह खुदा की हंसी
यह खुदी की हंसी!



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