कुछ मैंने बातें कही नहीं,
कुछ मेरी नर्म जुबां थी
कुछ उनकी मंद मुस्कान थी,
कुछ उनके घर का आँगन था
कुछ मेरी द्वार पर पूजा थी,
कुछ मेरे खुदा मुनासिब थे
कुछ उनके घर की दिवाली थी,
कुछ कदम चले थे वो घर से
कुछ मैंने फूल बिछाये थे,
कुछ हाथ हमारे पकड़े वो
कुछ हमने नज़रे झुका ली थी,
हम मत से भले अलग ही थे
पर दोनों बहुत अनोखे थे,
कुछ उनके दिल की ख्वाहिशें थी
कुछ मेरे मन के धोखे थे,
कुछ थोड़े गंगाजल वो थे
कुछ हम भी जमुना के पानी,
संगम भी हुआ प्रयाग में
जब मिलीं सरस्वती-सी ज्ञानी!
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