इबादत तो नहीं,
इरादे जान जाओगे
ख़ुदावत तो नहीं,
नाम लेता नहीं हूँ मैं
निगाहें बोल देती हैं,
तुम्हारी राह तकती हैं
शिकायत तो नहीं,
कुछ कह दिया तो
अब तलक नाराज बैठे हो,
विनोद ही किया है
मोहब्बत तो नहीं,
आयी ये उल्फत है
कि सुकूं ही नहीं,
सिज़दा मे होने को है
शहादत तो नहीं,
उसकी आरज़ू की है
जो औरों के हैं नसीब,
है बात छोटी-सी
हिकायत तो नहीं,
अफ़सानों मे पिरोते हैं
तुम्हारे नाम के मोती,
दरकार है तमन्ना की
हिमाकत तो नहीं,
इन्तेज़ार करता हूँ
बगावत तो नहीं,
मधुशाला में कह रहे हो
खामोश रहने को
इशारा ही तो किया है
शराफत तो नहीं,
ये धुएँ की बदलियाँ
तुम्हारे लफ्ज़ है बाखूब
इन्हें पढ़ता ही तो हूँ
झूठलाया तो नहीं,
कुछ किरणें काफ़ी हैं
मेरी शब की रौशनी को,
चाँदनी ही तो माँगी है
आसमाँ तो नहीं,
और हमको ही कर
रहे हो याद हर बखत,
बदनाम करके जीतने की
है बड़ी कुव्वत,
अपील ही तो की है
मुकदमा तो नहीं!
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