मोह की देहलीज छूकर
राम के दरबार में,
राम के मुंडेर पर
जहां से दिखे जहान
कुछ दूर होकर,
काम के अकाज मे,
राम के आलेख पर,
राम हैं पूर्ण
राम ही संपूर्ण,
अंत से करें शुरू
राम ही मंजिल
राम ही गुरु,
राम से ही मांगता
राम का स्वरूप
राम का हाथ
राम का ही रूप!
वापस वहीँ जहां
शरीर भी साथ घूमे,
हवा न डराया करे,
जहां बाँसुरी पर
उँगलियाँ और फुंक
एक ताल में हों,
जहां हाथ धरना न पड़े,
साथ चलना न पड़े,
करना भी ना हो इन्तेज़ार,
देने की हो खुशी
लेने की नहीं दरकार,
वह राम का दरबार,
वापस वही सरकार
राम को आभार!
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