तुम मुझसे
हर बात करती हो,
तुम गुस्सा हुआ करती
अभिमान करती हो,
तुम चिल्ला लेती हो
और मान जाती हो,
मुझसे बहस करती हो
और जीत जाती हो,
तुम भूल जाती हो
संग मेरे गीत गाती हो,
तुम समझ से अपने
मुझे क्या-क्या सिखाती हो,
पीती हो थोड़ा कम
और उलट जाती हो,
कहता नहीं तुमसे
तुम समझ जाती हो,
तुम देखकर मुझको भी
थोड़ा पलट जाती हो,
जो चाहिए तुमको
आकर माँग लेती हो,
मेरे हँसी करके
खुशी को बांट देती हो,
कभी-कभी तेवर मे
जब तुम तिलमिलाती हो,
कुछ सुनाती हो
कुछ घोंट जाती हो,
कैसे तुम्हारे रंग
मेरे शब्द बूँदों पर,
किरण से उठकर
इन्द्रधनुष हो जाती हो!
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