चलता था पैदल
मैं दौड़ लगाता था,
मै रोज सवेरे उठता था
ताज़ी हवा नहाता था,
मै साइकिल एक खरीदा था
मै चला के ऑफिस जाता था,
मैं चालीसा पढ़ता था
मैं नमन सूर्य को करता था,
मैं हाथ जोड़कर मिलता था
मैं खुद-ब-खुद मुस्काता था,
मै अपने सीट से उठकर जाता
सबका स्वागत करता था,
मेरे भी भीतर सपने थे
मै उनसे नजर मिलाता था,
मैं पर्वत पर चढ़ जाता
मैं नदियों मे बहुत उतर जाता,
मैं चिडियों की किलकारी
सुनकर मग्न हो जाता था,
मै अभी हूँ तो सही
पर मैं था भी!
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