Tuesday 9 January 2024

सच

उसको बता दूँ 
उसका सच,
मैं कहाँ जानता 
खुद का सच,
अपने कर्म का भारीपन 
मैं उड़ेल दूँ 
उसके ऊपर,

कह दूँ उसे 
जो जानती है,
जिससे छुपकर 
मुस्काती है,
कुछ पल उसकी 
मुस्कान मिटा,
मैं कालिख पोत लूँ 
जीवन पर,

कुछ कहूँ की 
वो चिंघाड़ उठे,
या मौन ही हो 
जल राख बुझे,
उसका देकर 
आदर्श उसे,
मैं चढ़ बैठूं 
सीने पर !

No comments:

Post a Comment

दो राहें

तुम चले सड़क पर सीधा  हम धरे एक पगडंडी, तुम्हारे कदम सजे से  हम बढ़े कूदते ठौर, तुमने थामी हवा की टहनियां  हम बैठे डिब्बे में संग, तुम संगीत...