Tuesday, 9 January 2024

उजाला

तुमने अभी तक ये 
जलवा हमारा नहीं देखा,
जिससे फ़ेर लिया मुँह 
उसे दोबारा नहीं देखा,

और चाहतें मैंने बड़ी 
सिद्दत से निभाई हैं,
पर मुझको किसी दोस्त ने 
नाकारा नहीं देखा,

मैं भूल भी जाऊँ 
तुम्हारे भूल जाने को,
पर याद से बढ़कर 
कोई सहारा नहीं देखा,

ग़म करूँ की नहीं 
इस दिल की नादानी का,
पर डुबने का सस्ता कोई 
पैमाना नहीं देखा,

वक्त लगता है बहुत 
यूँ डुबने मे भी,
मैंने जानकर कोई अभी 
किनारा नहीं देखा,

और शाम होने तक 
कोई मंजिल नहीं मिलती,
बनावट की किरणों से 
फकत उजालों नहीं मिलता!



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