लगाकर आग एक
तुम चली गई,
बुझाकर प्यास
तुम अपनी,
मुझे बेबस बनाकर
तुम चली गई,
मुझे हथेली पर
दिखाया चांद
चमचमचम,
मेरी चांदनी
को चुराकर
तुम चली गई,
मै जा रहा था
करने कुछ,
हो गया था
कुछ का कुछ,
पर राह मे
वापस घुमाकर
तुम चली गई,
तुम अपनी
सीमा लांघकर,
और निस्तेज
मुझको बोलकर,
आवारगी की
राह पर
कुछ एक कदम
बढ़ाकर मेरा
तुम चली गई,
बदली मेरे ज्ञान का
सिरे से हटाकर
तुम चली गई!
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