Thursday, 11 April 2019

आशिक़ी

हर तरफ़, हर जगह, बेशुमार आशिक़ी
फिर भी इक नाम की है, बीमार आशिक़ी।

रात दिन, सुबहों-शाम, नाम लेते हुए,
ज़र्रे में ढूँढ ले भगवान, आशिक़ी।

नाम के साथ में देह जोड़ा हुआ,
अपने हर इल्म से, बेकरार आशिक़ी।

उनसे करके बयाँ, हाल-ए-दिल, बेनक़ाब
उनकी रहमत की है, तलबग़ार आशिक़ी।

बातें कर ना सके, video call से,
Phone से ही रहे गुलबहार आशिक़ी।

उनके जलने पे कविता, पढ़ कर मेरी
अपने सत्य को रखे, पेशकार आशिक़ी।

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