आज मै तुमसे गले जो लगा तो,
जाना की
मेरी भी बाहें लम्बी है,
इसमे तुम समा जाती हो,
बच्चों की तरह।
मेरे कंधे भी मज़बूत हैं,
इसमें तुम ठहर जाती हो,
बादलों की तरह।
जिस्म की धीमी आँच,
मेरे कपड़े के बाहर भी उफनती है,
इसमे तुम पिघल जाती हो,
चूड़ियों की तरह।
जाना की,
जब बैठ जाती हैं
उभरी हुई शिराएँ,
और सो जाते हैं
खड़े हुए रोंगटे,
की कलेजे की ठंडक क्या होती है,
तुम जो बता जाती हो,
शायरों की तरह।
वो तकिया पकड़ के सोना,
या ठंडे पानी से नहाना,
आग की लपटों को
कम्बल से बुझाना,
बड़ा निर्मम होता है
राख को बुझा हुआ,
पर गर्म छोड़ जाना।
इसे तुम बुझाती हो,
पानी की तरह।
तुम्हारे पसीने की अर्क
और बालों की ख़ुशबू,
मेरी साँसें सोखती हैं,
अपनी साँसों की ख़ुशबू।
समाधि भी मुझको नहीं जोड़ती है,
तुम जो जोड़ती है,
रहनूमा की तरह।
तुमने पलकें उठाकर
आँखों में झाँका,
Facebook की photo-सी
तुम्हें मैंने आँका।
तुम्हारी ज़ुल्फें उड़कर,
होंठों पे आयी
मैंने कान के पीछे
सलीके से रक्खा।
मुझे देखकर मन में क्या सोचती हो,
मै मुझे जान पाया,
तुम्हारी तरह।
जाना की
मेरी भी बाहें लम्बी है,
इसमे तुम समा जाती हो,
बच्चों की तरह।
मेरे कंधे भी मज़बूत हैं,
इसमें तुम ठहर जाती हो,
बादलों की तरह।
जिस्म की धीमी आँच,
मेरे कपड़े के बाहर भी उफनती है,
इसमे तुम पिघल जाती हो,
चूड़ियों की तरह।
जाना की,
जब बैठ जाती हैं
उभरी हुई शिराएँ,
और सो जाते हैं
खड़े हुए रोंगटे,
की कलेजे की ठंडक क्या होती है,
तुम जो बता जाती हो,
शायरों की तरह।
वो तकिया पकड़ के सोना,
या ठंडे पानी से नहाना,
आग की लपटों को
कम्बल से बुझाना,
बड़ा निर्मम होता है
राख को बुझा हुआ,
पर गर्म छोड़ जाना।
इसे तुम बुझाती हो,
पानी की तरह।
और बालों की ख़ुशबू,
मेरी साँसें सोखती हैं,
अपनी साँसों की ख़ुशबू।
समाधि भी मुझको नहीं जोड़ती है,
तुम जो जोड़ती है,
रहनूमा की तरह।
तुमने पलकें उठाकर
आँखों में झाँका,
Facebook की photo-सी
तुम्हें मैंने आँका।
तुम्हारी ज़ुल्फें उड़कर,
होंठों पे आयी
मैंने कान के पीछे
सलीके से रक्खा।
मुझे देखकर मन में क्या सोचती हो,
मै मुझे जान पाया,
तुम्हारी तरह।
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