मुट्ठीभर किरणें उठा लेते,
जहां नहीं होती तुम
वहाँ भी पा लेते,
आजमाने की आदत है तुम्हारी
हम खुद को अजायबघर बना लेते,
आज के बाद फिर
मिलना कहाँ मंजूर है,
तुम सोचती हो मन मे
हम कदम बढ़ा लेते,
आजकल बदली है मेरे
शहर की रोशनी मे,
हम दिवाली मनाकर
तुम्हें बुला लेते!
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