कह देती की 'जाने दो'
तुम होती तो
भरमा देती झूठे गुस्से से,
तुम होती तो
माजरा समझ जाती
बात मेरी सुनकर बस,
तुम होती तो
करती बातें
मिलने वाले शौहरत की
होटल, खाने, पानी की
आने वाली गाड़ी की,
सोने वाले बिस्तर की
और साफ़ सफ़ाई चादर की,
तुम औरों की बातों का
मतलब खूब समझ जाती,
तुम उलझन के पहले ही
कुछ-कुछ कहकर निकल जाती,
तुम कभी-कभी आती
तुम काम छोड़कर आ जाती,
तुम मेरे काम की चीज़ों को
अपना काम बना लेती!
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